देवदास और डर
दोनो ही फिल्मों मेंं प्यार के अलग अलग रूप देखने को मिलते है।इतिहास उठाकर देखे तो हमे प्यार के अलग अलग रूप ही देखने को मिलेंंगे।देेेवदास वाला और डर वाला दोनो प्यार देखनेे को मिलेगे।
प्यार के दो रूप क्या होते है?
एक प्यार वो होता है,जो दिल से किया जाता है।आत्मा की गहराई से किया जाता है।मन से किया जाता है।यह प्यार सच्चा होता हैं।प्रेमिका किन्ही कारणों से प्रेमी की नही हो पाती।वह किसी और कि हो जाती है।तो भी प्रेमी प्रेमिका आजीवन एक दूसरे को चाहते रहते है, प्यार करते रहते है।देखिए कहा कहा है
तन से तन का मिलन न हुआ तो क्या मन से मन का मिलन भी कम नही प्यार में जरूरी और काम भी है जिंदगी के लिए
दूसरे प्यार में आदमी अंधा हो जाता है।उसे अच्छे बुरे का ज्ञान नही रहता।समाज का डर नही रहता।लोगो की परवाह नही रहती।बहुधा यह प्यार एक तरफा होता है।प्रेमी प्रेमिका को अपनी बनाना चाहता है।अगर प्रेमिका उसके प्यार को ठुकरा देती है,तो प्रेमी प्यार में पागल हो जाता है।परिणाम की चिंता किये बिना गुस्से,क्रोध में ऐसा कदम उठा लेता है कि जिंदगी भर पछताना पड़ता है।ऐसा ही राजन के साथ हुआ था।
एक दिन राजन कनॉट प्लेस पर सिटी बस के इन्तजार में खड़ा था।अचानक एक लड़की उसके पीछे आकर लाइन में लग गई. ।वह लडक़ी स्वर्ग से उतरी अप्सरा लग रही थी. ।राजन ने उस लड़की को देखा, तो बस देखता ही रह गया। वह लड़की कभी इधर कभी उधर देख रही थी ।जब काफी देर तक बस नही आई तब वह बोली थी,"ये दिल्ली की बसे कभी टाइम पर नही चलती।"
"कहां जाना है आपको?"उस लड़की की बात सुनकर राजन ने पूछा था।
"लक्ष्मी नगर",राजन की बात सुनकर वह लड़की बोली,"और आप?"
"जंगपुरा".राजन आगे कुछ और कहता उससे पहले उसकी बस आ गई और वह चला गया।
एक दिन राजन स्कूटर से जा रहा था।उसकी नज़र लाइन मे खड़ी उसी लडकी पर पड़ी थी।उस खूबसूरत बाला को देखते ही उसकी आँखों मे चमक आ गई।वह उस लड़की के पास स्कूटर रोकते हुए बोला,"पहचाना मुझे?"
"अरे आप।"लड़की राजन को देखकर मुस्करायी थी।
"कहां जा रही हो?"
"लक्ष्मीनगर".
"मैं छोड़ देता हूँ।आओ"
"आओ क्यो परेशान हो रहे है।मैं बस से चली जाऊंगी।"
"बैठो तो।"और वह लड़की स्कूटर पर बैठ गई थी।रास्ते मे राजन ने उस लडक़ी से कोई बात नही की।लक्ष्मी नगर आने पर वह लड़की स्कूटर से उतरते हुए बोली,"थैंक यू।"
"नो फॉर्मेलिटी"राजन बोला,"आपका नाम क्या है?"
"नज़मा"अपना नाम बताते हुए वह बोली,"और आपका?"
"राजन"
उस दिन के बाद राजन और नज़मा की जब तब मुलाकात होने लगी।उन मुलाकातों के जरिये दोनो का परिचय हुआ।राजन कानपुर का रहने वाला था।वह दिल्ली से एम बी ए कर रहा था।नज़मा आई ए एस की कोचिंग कर रही थी।और वे दोनों दोस्त बन गए थे।
और फिर उनकी मुलाकात होने के साथ फोन पर बाते भी होने लगी।एक दिन राजन नज़मा से बोला,"अपनी मम्मी से तो मिलवाओ।"
नज़मा राजन को अपने घर ले गई थी।नज़मा ने राजन का परिचय अपनी माँ से कराया था।उसकी माँ सुल्ताना, राजन से मिलकर खुश हुई थी।राजन जब आने लगा तब सुल्ताना बोली ,"आते रहना"
पहले वे कभी कभी मिलते थे लेकिन अब रोज मिलने लगे।वे दीनी साथ घूमने,पिक्चर देखने लगे।